पुदीना की खेती कैसे करें?
पुदीना को मेंथा एवं मिंट के नाम से भी जाना जाता है। यह पेट के लिए रामबाण औषधि है, इसका इस्तेमाल दवाओं के अलावा ठंडे पेय पदार्थ एवं चटनी बनाने के लिए किया जाता है। इसके पौधों में कीटों के प्रकोप का खतरा बहुत कम होता है। इसके साथ ही पुदीना के पौधे कई हद तक जल जमाव जैसी स्थिति को सहन करने में सक्षम होते हैं। पुदीना की फसल जल्दी तैयार हो जाती है और इसकी 1 बार बुवाई करके 3 से 4 बार कटाई की जा सकती है।
उपरोक्त कारणों से आज-कल पुदीना की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ता जा रहा है। अच्छी फसल होने पर मंडी में पुदीने के भाव भी अच्छे मिल जाते हैं। यदि आप भी पुदीना की खेती करना चाहते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए बहुत फायदेमंद होने वाला है। इसमें हम पुदीना की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु, रोपाई का समय एवं विधि, सिंचाई एवं कटाई के बारे में बात करेंगे। तो आइए सबसे पहले जानते हैं इसके लिए उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु के बारे में बात कर लेते हैं।
किस्मों
1-जापानी टकसाल
हिमालय (MAS0-1): यह CIMAP लखनऊ द्वारा जारी किया गया एक चयन है जिसमें 81% मेथॉल सामग्री के साथ 0.8 से 1.0% तेल (FWB) और एक कम जमाव बिंदु है।
कालका (Hyb-77); यह CIMAP लखनऊ द्वारा विकसित एक लंबी, जोरदार किस्म है।
शिवालिक : यह चीन से लाया गया था और CIMAP, लखनऊ द्वारा जारी किया गया था।
Ec-41911 : यह M.arvensis x M.piperita के बीच एक अंतर-क्रॉस क्रॉस का एक पूर्वज चयन है ।
2-पेपरमिंट
कुकराईल: यह एक उच्च उपज वाली किस्म है जिसे CIMAP लखनऊ द्वारा विकसित और जारी किया गया है।
3- स्पीयरमिंट
MSS-1: यह यूएसए से पूर्ण किए गए भाले की खेती से एक चयन है। यह किस्म CIMAP, लखनऊ द्वारा जारी की गई थी।
MESS-5: यह CIMAP, लखनऊ में किए गए MSS-1 से चयन है।
पंजाब स्पीयरमिन्ट -1: यह किस्म CIMAP, लखनऊ में किया गया एक क्लोनल चयन है। अर्का और नीरा CIMAP, लखनऊ से हाल ही में रिलीज़ हुई वैरायटी हैं।
रासायनिक संरचना और
जापानी टकसाल का उपयोग करता है
। ताजी पत्तियों में 4 से 6%% तेल होता है। तेल के मुख्य घटक मेन्थॉल (65-75%), मेंथोफोन (7-10%) और मेन्थिल एसीटेट (12-15%) और टेरपेन (पिपेन, लिमोनेन और कम्पेन) हैं।
पेपरमिंट (एमपाइपरिटा)
ताजा जड़ी बूटी में आवश्यक तेल 0.4 से 0.6% तक होता है। पेपरमिंट तेल के घटक लगभग जापानी टकसाल तेल के समान हैं। हालांकि, मेन्थॉल सामग्री पेपरमिंट तेल में कम है और 35-50% के बीच भिन्न होती है। अन्य घटक मेन्थिल एसीटेट (14-15%), मेंटलफोन (925%) मेन्थोफ्यूरन और टेरपेन जैसे पिनीन और लिमोनेन हैं।
बर्गमॉट टकसाल (M.citrate) लिनालूल और लिनाइल एसीटेट, बर्गमोट मिंट तेल के मुख्य घटक हैं। तेल का उपयोग सीधे इत्र में किया जाता है। कॉस्मेटिक तैयारी जैसे कि scents, साबुन, आफ्टर-शेव लोशन और कोलोन में भी यह तेल होता है।
स्पीयरमिंट (M.spicata) स्पीयरमिंट ऑयल
का मुख्य घटक कार्वोन (57.71%) है और अन्य छोटे घटकों में पेलेन्ड्रिन, लिमोनेन, एल-पिनीन और सिनेल हैं। तेल का उपयोग ज्यादातर टूथपेस्ट में स्वाद बढ़ाने और अचार और मसाले में भोजन के स्वाद के रूप में, च्युइंग गम और कन्फेक्शनरी, साबुन और सॉस के रूप में किया जाता है।
पुदीना की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
पुदीना की खेती लगभग हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है।
जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी पुदीने की खेती के लिए सर्वोत्तम है।
मिट्टी का पी.एच स्तर 6.0 से 7.5 होना चाहिए।
समशीतोष्ण जलवायु के साथ उष्ण एवं उपोषण जलवायु में भी पुदीने की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
पुदीने की रोपाई का समय
अत्यधिक ठंड वाले महीनों को छोड़कर वर्ष भर इसकी खेती की जा सकती है।
फरवरी-मार्च का महीना पौधों को लगाने के लिए सर्वोत्तम है।
रबी फसलों की कटाई के बाद भी पुदीने की खेती कर सकते हैं।
पुदीने के लिए खेत तैयार करने की विधि
सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से 1 से 2 बार गहरी जुताई करें।
इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई करके पाटा लगाएं।
अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ भूमि में 6 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं।
इसके अलावा खेत में नीम की खली भी मिलाई जा सकती है।
क्यारियां बना कर खेती करने से सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई में आसानी होती है। इसलिए जुताई के बाद खेत में क्यारियां तैयार करें।
पुदीने की रोपाई विधि
सबसे पहले नर्सरी में पौधे तैयार करें।
नर्सरी में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
पौधों में 3-4 पत्तीयां आने के बाद पौधों की मुख्य खेत में रोपाई करें।
मुख्य खेत में पौधों की रोपाई 45 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।
पुदीने की सिंचाई कब, कैसे करें?
पुदीना के पौधों को पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए पानी की कमी वाले क्षेत्रों में इसकी खेती न करें।
मिट्टी में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।
फरवरी-मार्च महीने में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए।
गर्मी के मौसम में 6 से 8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
ठंड के मौसम में 20 से 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
पुदीने की कटाई का सही समय
पौधों को लगाने के 60 से 90 दिनों के बाद पहली कटाई की जा सकती है।
इसके बाद हर 60-70 दिनों के अंतराल पर कटाई करें।
पौधों की कटाई जमीन की सतह से 6 से 8 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर करें।
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